राजस्थान में जनवरी के अंतिम सप्ताह में अजमेर, अलवर लोकसभा और मांडलगढ़ विधानसभा के लिए उपचुनाव होने हैं, लेकिन लगता है कि विपक्षी दल कांग्रेस को पहले ही हार का डर सताने लगा है। शायद यही कारण है कि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अभी से बेतुकी बयानबाजी कर इस हार का ठीकरा अपने सिर पर नहीं लेना चाहते। गहलोत का कहना है कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे वरिष्ठ अधिकारियों को उन क्षेत्रों में भेजती है जहां के या तो वो रहने वाले हैं या फिर जहां उपचुनाव होने हैं। वहीं गहलोत ने भाजपा सरकार पर बदले की भावना से काम करने व अधिकारियों को डराने-धमकाने का भी आरोप लगाया है।

अशोक गहलोत के इस तरह के आरोप लगाना कोई नई बात नहीं है क्योंकि विकास के मुद्दों से जनता को बहकाकर अर्थहीन राजनीति करना कांग्रेस का चलन रहा है। वैसे अधिकारियों की कार्यप्रणाली का दुरूपयोग कर राजनीति चमकाने का भी उनका पुराना इतिहास रहा है। मुख्यमंत्री रहते हुए उनके सचिव वरिष्ठ आईएएस अधिकारी निरंजन आर्य के पद का उन्होंने कितना राजनीतिक और व्यक्तिगत फायदा उठाया ये तो जगजाहिर है। गहलोत की छत्रछाया में ही वर्ष 2013 में आईएएस निरंजन आर्य ने झूठ बोलकर स्काउट एवं गाइड के राज्य संगठन के चीफ कमीशनर का चुनाव लड़ा।

इतना ही नहीं उन्होंने इसका फायदा विधानसभा चुनावों में भी उठाया और निरंजन आर्य की पत्नी संगीता आर्य को पाली के सोजत से कांग्रेस का टिकट देकर मैदान में उतार दिया। लेकिन यहां भी उनकी दाल नहीं गली और कांग्रेस उम्मीदवार संगीता आर्य भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदवार संजना आगरी से 20 हजार से भी ज्यादा वोटों से हार गई। विस चुनाव में प्रदेशभर से कांग्रेस के उम्मीदवारों को तय करवाने में भी आर्य ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। मीडिया ने कांग्रेस के शासन के दौरान आर्य द्वारा एक तरफा नजरिया रखने की बात को भी जोर शोर से उठाया, लेकिन गहलोत के सिर पर जूं तक नहीं रैंकी। परंतु अब जब वो विपक्ष में बैठे हैं तो सरकार द्वारा अधिकारियों के पद का दुरूपयोग करने का आरोप लगाकर लोगों का ध्यान खींचने का प्रयास कर रहे हैं।