देशभर में इस बार चेटीचण्ड पर्व 19 मार्च को मनाया जाएगा। भारत के साथ ही पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी चेटीचण्ड बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। चैत्र मास की प्रथम किरण के साथ ही विक्रम संवत् में नए साल की शुरूआत हो जाती है। चंद्रमास की द्वितीय तिथि को सिंधी दिवस यानि ‘चेटीचण्ड’ का महान् पर्व मनाया जाता है। यह पर्व न केवल सिंधी समुदाय को बल्कि समूचे राष्ट्र को एक नयी राह दिखलाता है। मुख्य रूप से सिंधी समाज के लोग चेटीचण्ड त्योहार मनाते हैं। यह उनके नए वर्ष की शुरूआत है और इस दिन को चेटीचण्ड के नाम से जाना जाता है। चैत्र मास को सिंधी में चेट कहा जाता है और चांद को चण्डु। अत: चेटीचण्ड यानी चैत्र का चांद। सभी त्योहारों की तरह इस के पीछे भी पौराणिक कथाएं हैं। आइये जानते हैं..

भगवान झूलेलाल जी के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है चेटीचण्ड

अवतारी युग पुरुष झूलेलाल जी के जन्मदिवस को देश और पाकिस्तान में ‘चेटीचण्ड’ के रूप में मनाया जाता है। उनका जन्म सद्भावना और भाईचारा बढ़ाने के लिए हुआ था। आज से करीब एक हजार वर्ष पूर्व, पाकिस्तान में सिंध प्रदेश के ठट्टा नगर में मिरखशाह नामक एक क्रूर मुगल सम्राट राज्य करता था। उसने ऐलान करवाया कि जो हिंदू इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं करेगा, उसका नाश किया जाएगा। कई हिंदू परिवारों ने उनके दबाव में आकर इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। कहा जाता है कि सभी पुरुषों, महिलाओं, बच्चों और बूढ़ों को सिंधु नदी के पास इकट्ठा किया गया तथा उन्हें लगातार ईश्वर का स्मरण करने को कहा गया। कड़ी तपस्या करने के बाद, सभी भक्तजनों को मछली पर सवार एक अद्भुत आकृति दिखाई दी। जिसके सिर पर मोर पंख तथा हाथों में गीता ग्रंथ तथा उनकी सफेद दाढ़ी थी। कुछ समय बाद ही आकाशवाणी हुई कि ‘हिंदू धर्म की रक्षा के लिए मैं आज से ठीक सात दिन बाद रतनराय के घर में माता देवकी की कोख से जन्म लूंगा।’ निश्चित समय पर आठवें दिन विक्रम संवत 1007 चैत्र मास की शुक्ल पक्ष शुक्रवार के दिन रतनराय के घर में एक सुंदर बालक का जन्म हुआ, जिसका नाम उदयचंद रखा गया। वही आगे चलकर जिंदहपीर, लालसाईं, झूलेलाल, अमरलाल, उडेरोलाल जैसे अनेक नामों से चर्चित हुए।

बाल्यकाल में ही झूलेलाल ने मिरखशाह को चमत्कारी खेल दिखाया। मिरखशाह हक्के-बक्के रह गए। बालक ने क्रोधित होते हुए अग्नि का रूप धारण कर लिया। पल पर में ठट्टा शहर को आग की लपटों ने घेर लिया और कुछ ही पलों में पूरे शहर में समुद्र जैसा पानी फैलने लगा। इसको देख बादशाह मिरखशाह ने न केवल माफी मांगी बल्कि वे स्वयं उनके अनुयायी बन गए। कुछ समय पश्चात् झूलेलाल जी संवत् 1020 भाद्रपद की शुक्ल चर्तुदशी के दिन अर्न्तध्यान हो गए।

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जल और ज्योति के अवतार माने जाते हैं भगवान झूलेलाल

भगवान झूलेलाल को जल के देवता वरुण का अवतार माना जाता है। पाकिस्तान के सिंध प्रांत से भारत के अन्य प्रांतों में आकर बस गए हिंदुओं में झूलेलाल को पूजने का प्रचलन ज्यादा है। उनके उपासक भगवान झूलेलाल जी को उदेरोलाल, घोड़ेवारो, जिन्दपीर, लालसांई, पल्लेवारो, ज्योतिनवारो, अमरलाल आदि नामों से पूजते हैं। चेटीचण्ड के दिन जल और ज्योति का अवतार माने जाने वाले भगवान झूलेलाल जी का काष्ठ का मंदिर बनाकर उसमें एक लोटे से जल और ज्योति प्रज्वलित की जाती है और इस मंदिर को श्रद्धालु अपने सिर पर उठाकर, भगवान वरुण देव का स्तुतिगान करते हैं, जिसे बहिराणा साहब भी कहा जाता है। इस दौरान सिंधी समाज के लोग अपना परंपरागत नृत्य टेज करते हुए नाचते-गाते हुए फेरी करते हैं।