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राजस्थान का प्रसिद्ध पुष्कर मेला आज समाप्त होने जा रहा है। आज यानि शनिवार को पुष्कर मेले का आखिरी दिन है। सात दिवसीय पुष्कर मेला 28 अक्टूबर को शुरू हुआ था। ​राजस्थान के अजमेर जिले के पुष्कर में हर साल भरने वाला पुष्कर मेला राजस्थान का सबसे बड़ा पशु मेला और ऊंट मेला भी कहा जाता है। विश्व प्रसिद्ध पांच दिवसीय यह मेला प्रति वर्ष राजस्थान सरकार के पर्यटन विभाग, पशु पालन विभाग द्वारा पुष्कर मेला विकास समिति के सहयोग से आयोजित किया जाता है। जैसाकि पहले भी बताया गया है, आखिरी दिन यहां कई तरह के रंगारंग कार्यक्रम और कई प्रतियोगिताओं को आयोजन किया जाने वाला है। इनमें हॉट एयर बैलून फ्लाइट्स, रस्सी खेंच, चकरी नृत्य, कालबेलिया नृत्य, गैर नृत्य, चंग ढ़प, मश्क वादन, कच्छी घोड़ी के साथ समुह नृत्य का आयोजन होगा। ऊंटों व अन्य मवेशियों की खरीद—फरोख्त का सिलसिला अभी भी अपनी चरम सीमा पर है। मेले के आखिरी दिन यानि आज सभी प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कृत भी किया जाएगा। साथ ही उन्नत किस्म के पशुओं व पशुपालकों को भी सम्मानित किया जाएगा।

जयपुर की चांद ने जीती मटका दौड़

पुष्कर मेला के आयोजन मैदान में गुरूवार को आयोजित मटका रेस प्रतियोगिता में देसी के साथ विदेशी महिलाओं ने भी अपने सिर पर पानी से भरी मटकी रखकर दौड़ लगाई। जैसे ही राजस्थानी महिलाओं ने दौड़ना शुरू किया, कई शुरूआत में ही मटकी सहित गिर पड़ी और कईयों ने आखिर तक अपना साहस नहीं छोड़ा।

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इस प्रतियोगिता में 15 महिलाओं ने भाग लिया था जिसमें से जयपुर के हरमाड़ा गांव की निवासी चांद जाट प्रथम स्थान पर रही। पुष्कर की रेखा सुवासिया दूसरे और जयपुर की हरमाड़ा गांव की ही सीता जाट तीसरे स्थान पर रही। प्रतियोगिता में चार विदेशी महिलाओं का सिर पर पानी की मटकी रखकर और आंखों पर काला चश्मा चढ़ाए रेतीले धोरों के बीच दौड़ना देखने लायक था।

21.9 किलोमीटर की हारमॉनी मैराथन

सामाजिक समरसता का संदेश देती 21.9 किलोमीटर लंबी हारमॉनी मैराथन का शुक्रवार को आयोजन किया गया। यह मैराथन सुबह 6 बजे अजमेर से पुष्कर के लिए थी जिसमें सैंकड़ों लोगों व शहरवासियों ने भाग लिया।

इटली का पर्यटक दीक्षा लेकर बना संत

कहते हैं भगवान कहीं भी मिल सकता है और भारत की पवित्र धरती से बेहतर स्थान इसके लिए कहीं ओर नहीं है। ऐसा ही कुछ देखने को मिला पुष्कर मेला में जहां इटली का एक पर्यटक जूना अखाड़ा संत से दीक्षा लेकर संन्यासी बन गया। जोनो नामक ने इस युवक ने अब अपना नया नाम जीनीगिरी रख लिया है। दीक्षा के लिए जीनीगिरी ने अपना सिर मुंडवाया, तिलक लगवाया और संन्यासी के भगवा वस्त्र. धारण कर अपने गुरू के साथ मंदिरों के दर्शनार्थ हेतु निकल पड़ा।

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