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लैला-मजनू मजार

बुधवार, 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे है यानि प्यार का दिन, प्यार के इजहार का दिन। वैसे तो इन दिन को युवा युगल या फिर यूं कहे कपल्स अपने हिसाब से सेलिब्रेट करते हैं। लेकिन आज हम एक ऐसी कहानी बता रहे हैं जो प्यार की एक बेमिसाल व अनकही कहानी है। यह है लैला-मजनू की कहानी। राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के अनुपगढ़ शहर के निकट बिंजौर गांव में स्थित है इस अरबी जोड़े की एक मजार जो प्यार करने वालों के लिए एक पाकसाफ स्थल है। भारत-पाकिस्तान सीमा पर बना लैला-मजनू का यह मकबरा सालों बाद भी अमर प्रेम की याद दिलाता है।

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लैला-मजनू मजार

लैला-मजनू मजार और उनके बीच प्रेम कहानी से जुड़ी कई कहानी-किस्से और किंवदंतियां यहां बताई जाती है लेकिन पूरा सच किसी को ठीक से पता नहीं। बरसों से यहीं रहने वाले के अनुसार, लैला-मजनू सिंध से भारत आए थे और यहां बिंजौर में प्यार से मर गए। यह भी बताया जाता है कि मजनू की मौत के पीछे लैला के भाई और उसके परिवार वालों का हाथ था जो दोनों को एक साथ नहीं देखना चाहते थे। इसलिए उसने मजनू को मरवा दिया और उसी समय लैला ने आत्महत्या कर ली।

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एक कहानी यह भी है कि लैला एक अमीर परिवार से थी और मजनू एक गरीब निर्धन परिवार से। ऐसे में परिवार वालों ने लैला की शादी एक अमीर आदमी से कर दी। शादी के बाद लैला के पति को मजनू के बारे में पता चला तो उसने उसकी हत्या करवा दी। लेकिन मरने वाला मजनू नहीं बल्कि लैला थी। लैला के मृत शरीर को खून में सना देख मजनू ने वहीं आत्महत्या कर ली और दोनों की मौत हो गई। कुछ लोग इसे लैला-मजनू नहीं बल्कि एक शिक्षक और छात्र की मजार बताते हैं जो उनके आपसी प्रेम-सम्मान को दर्शाता है। इन कहानियों में कुछ सच्चाई है या नहीं, कोई नहीं जानता। लेकिन इतिहासकार इन सभी कहानियों को केवल एक पौराणिक पात्रों का नाम देते हैं।

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खैर, सच जो भी हो लेकिन यह स्थान एक सच्चे प्रेम का प्रतीक बन गया है। लोगों का मानना है कि जो भी कपल या नवविवाहित जोड़ा इस मजार (मकबरे) पर आता है, यह मृतक जोड़ा उन्हें अच्छी और प्यार भरी जिंदगी का आशीर्वाद देता है। इस मजार की लोकप्रियता इतनी है कि हर साल जून में इस मकबरे पर एक वार्षिक मेला आयोजित किया जाता है जिसमें कई दंपतियां यहां आशीर्वाद लेने पहुंचती है। यहां आने वालों के लिए प्रसाद और लंगर की मुफ्त व्यवस्था भी की जाती है। साथ ही रात्रि भक्ति गीतों का प्रदर्शन भी होता है।

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आपको बताते चलें कि कारगिल युद्ध से पहले यह स्थान पाकिस्तानी पर्यटकों के लिए भी खुला था, लेकिन फिलहाल इसे वहां के लिए बंद कर दिया गया है। इस कब्र की लोकप्रियता इतनी अधिक है कि उस क्षेत्र में बीएसएफ बॉर्डर को भी मजनू के नाम से जाना जाता है। मेले में आने वाले पर्यटकों की संख्या को देखते हुए राजस्थान सरकार गांव में सुविधाओं की संख्या बढ़ाने की योजना बना रही है।

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